मुश्किल है मिलना फिर से वो कारवां, भला वो खुशियाँ और कहाँ। मुश्किल है मिलना फिर से वो कारवां, भला वो खुशियाँ और कहाँ।
अब मेरे आशियाने की शोभा बढ़ाती है ये खिड़कियाँ। अब मेरे आशियाने की शोभा बढ़ाती है ये खिड़कियाँ।
भीड़ में भी तन्हा, रहने की कसम खा ली अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है। भीड़ में भी तन्हा, रहने की कसम खा ली अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है।
ये शाम नहीं मंत्र मुग्ध करते लम्हों की कशिश है। ये शाम नहीं मंत्र मुग्ध करते लम्हों की कशिश है।
सुबह की भोर वो सूरज की बाँहों में हम घिरे महकती जुल्फों में तुम हमारे उलझे। सुबह की भोर वो सूरज की बाँहों में हम घिरे महकती जुल्फों में तुम हमारे उलझे।