भीड़ में भी तन्हा, रहने की कसम खा ली अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है। भीड़ में भी तन्हा, रहने की कसम खा ली अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है।
क्या है मेरी पहचान, कब तक धुंधली रहेगी, औरत ने है ये सवाल उठाया। क्या है मेरी पहचान, कब तक धुंधली रहेगी, औरत ने है ये सवाल उठाया।
जैसे रात को सुबह मिल जाए जैसे हर ज़ुस्तज़ू रास आ जाए! जैसे रात को सुबह मिल जाए जैसे हर ज़ुस्तज़ू रास आ जाए!
है एक धुँधली सी तस्वीर लहराते बाल लबों पे हँसी, है एक धुँधली सी तस्वीर लहराते बाल लबों पे हँसी,
जख्मों को कुरेदो भी ऐसे कि आँखों से अश्क बहने लगे । जख्मों को कुरेदो भी ऐसे कि आँखों से अश्क बहने लगे ।