मौत भी गुनगुनाने लगे
मौत भी गुनगुनाने लगे
जख्मों को कुरेदो भी ऐसे कि आँखों से अश्क बहने लगे ।
तकिये पे मुहं छुपाए सारी रात बस जज़्बात बात करने लगे ।
घण्टों महीनों या सालों साल देखो उनकी धुंधली सी तस्वीरें को,
इसतरह घुट घुट के रोज जियो की तस्वीरें तुम्हे बुलाने लगे ।
अगर कभी कदम मिले भी उनसे किसी एकतरफा रस्ते पर,
मुड़ जाना और चलना उल्टे रस्ते ताकि मौत भी गुनगुनाने लगे ।
मिलना टकराना कभी कभी दिखना ये तो दो पल के मेहमान,
मिलो ऐसे की अपना टूटा फूटा आशियाना फिर जलने लगे ।
अब दूर ही बैठो तुम अपनी इश्क की फटी पुरानी किताब लिए ,
ऐसे खुद को बर्बाद करदो की किताब खुद किस्से सुनाने लगे ।
