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Rahul Wasulkar

Abstract

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Rahul Wasulkar

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मौत भी गुनगुनाने लगे

मौत भी गुनगुनाने लगे

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जख्मों को कुरेदो भी ऐसे कि आँखों से अश्क बहने लगे ।

तकिये पे मुहं छुपाए सारी रात बस जज़्बात बात करने लगे ।


घण्टों महीनों या सालों साल देखो उनकी धुंधली सी तस्वीरें को,

इसतरह घुट घुट के रोज जियो की तस्वीरें तुम्हे बुलाने लगे ।


अगर कभी कदम मिले भी उनसे किसी एकतरफा रस्ते पर,

मुड़ जाना और चलना उल्टे रस्ते ताकि मौत भी गुनगुनाने लगे ।


मिलना टकराना कभी कभी दिखना ये तो दो पल के मेहमान,

मिलो ऐसे की अपना टूटा फूटा आशियाना फिर जलने लगे ।


अब दूर ही बैठो तुम अपनी इश्क की फटी पुरानी किताब लिए ,

ऐसे खुद को बर्बाद करदो की किताब खुद किस्से सुनाने लगे ।


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