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Rahul Wasulkar

Abstract

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Rahul Wasulkar

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"क्रोध"

"क्रोध"

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बेहद गुस्से में, मैंने अपने मन के अंदर देखा

अव्यक्त प्रचंड अग्नि में भावनाओं की कुछ रेखा

ज्वलंत भावनाओं पर मंथन और जलती रही

मधुर बंधों को राख करती अग्नि की कुछ रेखा


धैर्य के शिलाखण्डों साथ इमारत का निर्माण देखा

लोग तुम पर पत्थर फेंकते उनका भी कुछ लेखा

जीत , अंहकार की भावना साथ हवा में उड़ रहा

भयानक भस्मासुर अपने प्रतिबिंब में जो तुमने देखा।


शत्रुओं और प्रतिस्पर्धीयों को नष्ट करने के लिए

तथ्य और सुविचारों को जो तूने किया अनदेखा

जीवन को एक जीवित नर्क में बदल दिया

दर्द में मरते हुए पीड़ित को जो किया अनदेखा।


शालीनता के साथ दर्पण के आगे जो बैठा

अंधेरे में काले दिल को जला के भी न परखा

पुराने नए बंधन कुचलता झूठी तेरी प्रतिष्ठा

मधुर बंधों को राख करती अग्नि की कुछ रेखा।


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