दोहे (रामजी हनुमान जी के भेट से लेकर विदाई तक)
दोहे (रामजी हनुमान जी के भेट से लेकर विदाई तक)
कोसलराज दशरथ पुत्र , ऋष्यमूक के समीप ,
साधु बन मिले हनुमान , चरण छू जले दीप ।
बाली का हुआ वध फिर , वानरराज राजे ।
माँ सीता की खोज में , वानर सेना सजे ।
लघिमा शक्ति के बल को , फिर से किया जागर ,
विराट रूप धारण कर , लांघ गए जो सागर ,
पवनपुत्र ने रावण को , बोध कर समझाया ।
रुद्र अवतार धर के , लंका को जलाया ।
पराक्रमी महाबली , युद्ध करे भयंकर ।
संहार करे पाप का , जैसे शिवशंकर ।
शक्ति बाण का प्रहार , लक्ष्मण हुए मूर्छित ।
युद्धगनावा में करे , द्रोणागिरि अंकुरित ।
पवनपुत्र जी कि पीठ पर , राम जी हुए सवार ।
नाभि पर किया प्रहार , रावण का संहार ।
राम भक्ति का संसार , मांगे रे प्रमाण ।
फाड़ कर छाती अपनी , अटूट भक्ति निर्माण ।
राम जी का हुआ समय , विष्णुलोक को चले ।
पवनपुत्र जी से वो फिर , कभी भी नही मिले ।
