इंसानी रवैये पर कुछ दोहे
इंसानी रवैये पर कुछ दोहे
आईना सब देख रहें , मुख पर भी मुस्कान ।
अंतर मन कौन देखा, छुपा असल इंसान ।
बाजारों में बिक रहा , अब भी यह अनजान ।
छुपा रहा जिंदगी भर , करें नकल नादान ।
बदल बदल और बदला , जब मिला बेईमान ।
अभी तो वो बदल गया , कि खोज रहा ईमान ।
अपनों के घर लुट रहें , यह भी ना तो ज्ञान ।
दिखावे के बीज बोए , छुटपुट करता दान ।
भला मानस ढूंढ रहा , बस इतना ही जान ।
भले बुरे में फंस गया , कि खुद को बुरा मान ।