आजादी
आजादी
समय बदल गया है
आज जिधर देखो उधर
आजादी का डंका
बज रहा है
स्त्रियों को घर की
रिश्तों की
रस्मों रिवाजों
से आजादी
पहनने ओढ़ने
खाने पीने की
आजादी
खूंटे से बँधी
बछिया को
चार पैरों की
अनपढ़ स्त्री को
पढ़ी लिखी का
मुँह ताकने
शहर की लड़की को
एकांत में नग्न
नृत्य करने
स्त्री पर लिखी
पुस्तकों को
जमीन पर
आने की
पुस्तकों में स्त्री
को तलाशने
अंग वस्त्रों को
दुपट्टे से
काम करने वाली
स्त्री को
कमर सीधे
करने के
लिए नर्म
बिस्तर
एक वेश्या को
दिन में काम
करने की आजादी
सभी की
आजादी चाहिए
स्त्री को किसने
रोका है
समय बदल गया है
जमाना बदल गया है
लिखने वाले किस
ज़माने की बात करते है
ये जमाना बदल गया है
भारत वर्ष में पूर्व में भी
स्त्रियां राजाओं
के साथ एक
ही सिंहासन पर
आसीन हो कर
राज करती थी
बराबर से काज.
करती थीं
देवताओं में ही कहीं
कोई भेदभाव नहीं है
शिव पार्वती
राधा कृष्ण
राम सीता
दुर्गा, भवानी
सरस्वती क्या नहीं
स्त्रियों का दर्पण
लक्ष्मी बाई
अहिल्या बाई
ज्योति बाई फुले
सभी ने अपना
कार्य आजादी
से किया
कहीं कोई
बंदिश नहीं
कहीं कोई
दीवार नहीं
इसी को कहते
आजादी
वर्तमान स्त्रियों की
आजादी का अभूतपूर्व
काल है
जहां देखो वहां
स्त्रियां कार्यरत हैं
सेना, दफ़्तर, बैंक्स
व्यापार कहाँ नहीं
स्त्री का साम्राज्य
हर व्यवसाय में स्त्री
अपना अस्तित्व
दर्शा रही है
पढ़ाई में लिखाई में
गांव शहर हर जगह
स्त्री पढ़ाई जा रही है
महीने के कपड़े से
भी मुक्त
हो रही है
घरों में भी स्त्रियां
आजाद हैं
नहीं कोई बंदिश
कांधे पे बैग लेकर
शॉपिंग माल स्त्रियों
से भरे रहते हैं
होटलों में रेस्तराँओं में
सिनेमा हालों में
बाग बगीचा में
लड़कों के गले में
हाथ डाले
हाथों में हाथ लिए
गले मिलते हुए
एक दूसरे का चुम्बन
लेते हुए मिल जाएंगी
ओर कितनी आजादी
ईश्वर ने सुन्दर बनाया
सुकोमल बनाया
सुडोल बनाया
शक्ति शाली बनाया
पुरुष तुच्छ प्राणी
कुछ नहीं पाया
स्त्री के आगे
नत मस्तक
हो कर जीवन
बिताया
स्त्री ने
गृह लक्ष्मी
राज लक्ष्मी
का दर्जा पाया
महारानी का पद
प्रधानमंत्री
राष्ट्रपति का
पद पाया
इससे ज्यादा
और किस
बात की आजादी
स्त्री आजाद थी
आजाद रही है
आजाद रहेगी।