गणेश
गणेश
प्रथम पूजनीय बने वो इससे
मां पार्वती ने इक माटी के पुतले में
शक्ति भर कर अपार
इक सुंदर बालक को दिया जीवन दान
स्नान करने गई जब माता देकर गणेश को यह काम
किसी को भी आने मत देना कितना भी हो महान
गणेश अपने कार्य पर डटे हुए थे मन से
इतने में महादेव आकर बोले उनसे
अंदर जाने दो मुझे तुम बालक हो कौन
इस प्रकार मेरी ही अर्धांगिनी से रोकने वाले कौन
गणेश बोले माता की आज्ञा है कोई न आने पाए
महादेव हो गए क्रोधित बोले रोक तुम सकते नहीं
गणेश भी तैयार थे हरगिज घबराये ही नहीं
महादेव का क्रोध अब हो गया बेकाबू
त्रिशूल उठाकर हाथ में किया उन्होंने वार
नन्हे गणेश का सर गिरा जंगल के पार
इतने में माता आईं बाहर लगाई गणेश को पुकार
पर ये सर के बिना धड़ देखकर हो गई बहुत व्याकुल
सारी बात जानकर महादेव पर हुई क्रोधित
बालक को जीवित करने की थी माँग
बोलीं माता नहीं तो वो देंगी त्याग प्राण
महादेव को हुई ग्लानि अपने क्रोध पर बहुत
चले ढूँढ़ने सर गणेश का मुश्किल में थे बहुत
बहुत ढूँढ़ने पर एक हथनी को देखा
पीठ थी उसकी अपने बच्चे की ओर पास में जो था लेटा
महादेव लेकर आए उसका सर अपने साथ
देखकर हाथी का मस्तक माता ने किया हाहाकार
पर कोई उपाय न जानकर हाथी का मस्तक धड़ को लगाया
बिना सर के उस धड़ ने था नया जीवन पाया
तब गणेश ने गजानन था पाया यह अनोखा नाम
महादेव के कहने से ही प्रथम पूजनीय देवता सम्मान।