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Kavita Sharma

Abstract

4  

Kavita Sharma

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गणेश

गणेश

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393


प्रथम पूजनीय बने वो इससे

मां पार्वती ने इक माटी के पुतले में 

शक्ति भर कर अपार

इक सुंदर बालक को दिया जीवन दान

स्नान करने गई जब माता देकर गणेश को यह काम

किसी को भी आने मत देना कितना भी हो महान

गणेश अपने कार्य पर डटे हुए थे मन से

इतने में महादेव आकर बोले उनसे

अंदर जाने दो मुझे तुम बालक हो कौन

इस प्रकार मेरी ही अर्धांगिनी से रोकने वाले कौन

गणेश बोले माता की आज्ञा है कोई न आने पाए 

महादेव हो गए क्रोधित बोले रोक तुम सकते नहीं

गणेश भी तैयार थे हरगिज घबराये ही नहीं

महादेव का क्रोध अब हो गया बेकाबू

 त्रिशूल उठाकर हाथ में किया उन्होंने वार

नन्हे गणेश का सर गिरा जंगल के पार

इतने में माता आईं बाहर लगाई गणेश को पुकार

पर ये सर के बिना धड़ देखकर हो गई बहुत व्याकुल

सारी बात जानकर महादेव पर हुई क्रोधित

बालक को जीवित करने की थी माँग

 बोलीं माता नहीं तो वो देंगी त्याग प्राण

महादेव को हुई ग्लानि अपने क्रोध पर बहुत

चले ढूँढ़ने सर गणेश का मुश्किल में थे बहुत

बहुत ढूँढ़ने पर एक हथनी को देखा

पीठ थी उसकी अपने बच्चे की ओर पास में जो था लेटा

महादेव लेकर आए उसका सर अपने साथ

देखकर हाथी का मस्तक माता ने किया हाहाकार

पर कोई उपाय न जानकर हाथी का मस्तक धड़ को लगाया

बिना सर के उस धड़ ने था नया जीवन पाया

तब गणेश ने गजानन था पाया यह अनोखा नाम 

महादेव के कहने से ही प्रथम पूजनीय देवता सम्मान।

 


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