कैसे समझाऊँ ...... बड़े नासमझ हो! कैसे समझाऊँ ...... बड़े नासमझ हो!
आज मन को उड़ने दो सपनों की उड़ान भरने दो। आज मन को उड़ने दो सपनों की उड़ान भरने दो।
लेखक : सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
इस दिल और दिमाग की जंग में हम उलझ कर रह जाते है, इस दिल और दिमाग की जंग में हम उलझ कर रह जाते है,
ठीक वैसे ही तुम्हारे घर की औरतों को भी देखकर कोई मर्द घूरता होगा, ठीक वैसे ही तुम्हारे घर की औरतों को भी देखकर कोई मर्द घूरता होगा,
मैं संभल - संभल के चला, फिर भी देख फिसल ही गया। मैं संभल - संभल के चला, फिर भी देख फिसल ही गया।