कितने महीने, कितने साल ?
कितने महीने, कितने साल ?
कुछ लम्हे बीते, कुछ दिन बीते,
कुछ महीने, फिर कुछ साल गये
और हम बैठे अँधियारे में
कुछ सपनों को फिर टाल गए।
कालचक्र के चाल को कोई ना जान पाया
बड़े-बड़े धुरंधरों को भी इसने अपने इशारे पर नचाया
राजा हो या फकीर,
कोई डाकू हो या पीर
समय ने पलट कर रख दिया,
हाथों में भी खींची हुई लकीर
कोई न बच पाया समय के खेल से
बुझे चिराग भी जल उठे,
बिना किसी तेल से।
जख्म है इसने दिया,
एक दिन मरहम भी लगाएगा
है यकीन मुझे खुद पर,
एक दिन पत्थर भी मोम सा पिघल जाएगा।
कुछ अपनों ने, कुछ गैरों ने
बांधे बंधन इन पैरों में
एक सैलाब उमड़ता लगता है,
मन के सागर के लहरों में।
कुछ दर्द छुपे हैं दिन में उभरते,
होंठों की मुस्कान में
आंसुओं की धारा बहती है,
इन रातों के सुनसान में।
पर सुबह देख सूरज की किरणों को,
अंधियारे का छुप जाना,
गुमसुम सी इन गलियारों में,
चिड़ियों का चह चह शोर मचाना।
देख इनका फुदकना,
इस डाल से उस डाल पर
हंस के जोड़ों का झूमना,
बगिया के बीच ताल पर।
बुझे मन के कोनों में,
एक रोशनी सी जल गई
सपने सच करने की मुझे,
फिर एक वजह मिल गई।
हालात कैसे भी विपरीत हो,
झुक जाता है हौसलों के सामने
कामयाबी आएगी खुद ब खुद एक दिन,
हमारा हाथ थामने
छोटी सी जिंदगी में हर पल,
धैर्य और साहब का इम्तिहान है
हर बाधाओं को जो पार कर गया,
असल में वही सच्चा इंसान है।
समय की गट्ठर में बँधकर,
सुख-दुख और अच्छे बुरे कितने बवाल गए
देखते ही देखते,
जीवन के कितने साल गए ।
काल के गाल में ना समा जाए सब कुछ,
ए मेरे साथी सुन
रंग लो अपनी जिंदगी रंग बिरंगे रंगों से,
छेड़ो नया साज कोई
बुनों कोई मीठी सी धुन।
हंसते मुस्कुराते यह सफर,
सुहाना बन जाएगा
क्या लेकर कोई आया था जग में,
और क्या लेकर कोई जाएगा ।
अलविदा इस जहां को कहने से पहले,
कुछ करो ऐसा कमाल
कि पल, दिन, महीने ही नहीं,
रहो सब के दिलों में सालों साल।।
