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Ritu Agrawal

Abstract

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Ritu Agrawal

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ज़िंदगी की पहेली

ज़िंदगी की पहेली

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जिंदगी की पहेली सुलझाने चली थी,

पर उसमें ही, और उलझ गई।

जब बैठती हूं, उसके सिरे खोजने, 

तो सब कुछ बिखरा हुआ पाती हूं। 

सहेजने की कोशिश भी करूं,

पर समेट नहीं पाती हूं।

यह मेरी जिंदगी की पहेली है,

मुझे ही सुलझाना होगा।

उलझनों को दूर करके,

जीवन सुगम बनाना होगा।

किसी एक सिरे से तो शुरू करना होगा, 

तो इस पहेली का हल, मिल ही जाएगा।

हाँ ,मिल ही जाए।



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