नमक
नमक
सीलन भरी कोठरी में रात के स्याह अंधेरे में,
अपने ज़मीर की बेशर्मी से हत्या करके,
जिस बेबस स्त्री देह का नमक चखा तुमने।
उस नमक का कर्ज़ कैसे उतारोगे?
क्या उसका बेनूर सा जीवन,
चुटकी भर इश्क के नमक से सँवारोगे?
मत सोचना कि ये नमक सुंदर रंगों से हीन है,
पानी के आगे भी ये बेबस और शक्तिहीन है।
नमक के प्रताप को कमज़ोर न मानना
दुनिया हिला सकता है नमक, ये सच जानना।
किसी की मीठी मुस्कान या खारे आँसुओं में घुलकर,
और मेहनतकश, गरीब इंसान के पसीने में मिलकर।
देखना, प्रलय काल तक बस यही नमक अक्षय रहेगा।