आज की नारी
आज की नारी
गए जमाने उस दुनिया के,जब सब कहते थे स्त्री अबला है।
आज की नारी मोहताज नहीं किसी की,वह तो अब सबला है।
न घबराती है दुश्वारियों से,लोहा लेती सदा कठिनाइयों से।
विजय पथ पर सतत बढ़ती जाती,है प्रेम उसे ऊँचाइयों से।
स्त्री घर-बाहर की हर जिम्मेदारी,पूरी मुस्तैदी से निभाती है।
जो उसको कोई बेचारी समझे तो अच्छा सबक सिखाती है।
अब न कोई उसे बेड़ियों में जकड़ पाए,ना ही कोई उसे रोक पाए,
यह नारी के विकास का पथ है जिस पर वह निरंतर चलती जाए।
माना बहुत दूर है बराबरी की मंजिल पर एक दिन मिलेगी जरूर।
यह स्त्री का दृढ़ आत्मविश्वास है,न समझो इसे केवल गुरूर।
स्त्री-पुरुष में फासले बड़े थे इसलिए कुछ दुष्कर है दूरियाँ मिटाना।
स्त्री-पुरुष के कदम से कदम मिलेंगे,जल्द पूरा होगा यह सपना।
देखो उम्मीद की नई रोशनी लिए, एक नवल सूर्य निकलता है।
जिसे देख पुरुष समाज की,श्रेष्ठता का दंभ भी पिघलता है।