यशोदा का नंदलाला
यशोदा का नंदलाला
भाद्रप कृष्णपक्ष अष्टमी थी, बड़ी तूफानी सी थी रात,
कैद में थे वसुदेव देवकी, हो रही थी बड़ी तेज़ बरसात।
अचानक प्रहरी सुध बुध भूले, कान्हा ने जन्म लिया।
द्वार खुले कारागार के, देवताओं ने भी नमन किया।
सूप में रख नन्हे कान्हा, वसुदेव चले गोकुल की ओर।
नदी भरी थी जल से लबालब,भारी था लहरों का शोर।
दिया रास्ता यमुना जी ने पखारकर कन्हैया के पाँव।
शेषनाग की छात्रछाया संग, वसुदेव पहुँचे नंद के गाँव।
वहाँ सब थे सोए, वसुदेव ने कान्हा यशोदा संग लिटाए।
फिर मायादेवी रूपी कन्या को, गोद में लिया उठाए।
वापस आ कारावास,दिया कंस को जचकी का संदेश।
कंस पहुँचा वंश मिटाने,मिला मृत्यु का आकाश संदेश।
उधर यशोदा ने जब देखा, पुत्र श्याम सलोना कान्हा।
उसकी मृदु मुस्कान से, तो बना गोकुल धाम दीवाना।
यशोदा के नंदलाला ने ब्रजधाम में अनेकों लीलाएँ कीं।
कई असुरों का नाश किया, ब्रजवासियों की पीर हरी।
कृष्ण कन्हैया पुत्र थे देवकी और वसुदेव के जाए,
पर पालनहार मैया यशोदा के नंदलाला सदा कहाए।
माँ यशोदा और कान्हा के प्रेम की जग देता है उपमा।
हर माँ यशोदा बन झुलाए अपने मन मंदिर का कान्हा।