सोच से संपन्न होता हैं आदमी
सोच से संपन्न होता हैं आदमी
सोच से संपन्न होता है आदमी
ख़ुद में जो विश्वास भरता है आदमी
अनोखा एहसास जो करता है आदमी
मुसीबत से कहां डरता है वो आदमी
सोच से जो संपन्न होता है आदमी
विश्वास को विशाल बना लेता है वो आदमी
प्रकृति से जो अद्भुत मित्रता करता है आदमी
प्रकृति से जीने का रहस्य छिन लेता है वो आदमी
विश्वास को जो विकास के रास्ते लाता है आदमी
सच जान चांद पे भी जमीं बनाता है वो आदमी
हर भूखे को भोजन का रास्ता बताता है जो आदमी
इस अमिट क्रांति में ख़ुद मिट जाता है वो आदमी
सोच को जो संपन्न बनाता है आदमी
विकास को विश्वास के रास्ते लाता है वो आदमी।
