"कवि का राष्ट्र धर्म "
"कवि का राष्ट्र धर्म "
😶😶 "कवि का राष्ट्र धर्म" ✍️✍️
हे कविवर, तुमको दुनिया बदलना है
राष्ट्रभक्ति के स्वर से नभ को भरना है।
नीरव व्यथाओं में ज्योति जलानी है,
नीति-अनीति में राह दिखानी है।
भूखा है कोई, तो व्यथा उकेरो तुम,
सीमा पर जो डटा, उसे शौर्य दो तुम।
काग़ज़ पे नहीं, धड़कनों में जियो,
जन-जन के मन में क्रांति बन पिओ।
भ्रष्ट व्यवस्था से प्रश्न कर सको तुम,
कलम की नोंक से न्याय भर सको तुम।
झूठ की चादरों को चीरते चलो,
सत्य के दीप हर कोने में जलाओ।
देश की माटी पुकारे तुम्हें बार-बार,
बनो तुम जनगाथा के नए श्रृंगार।
हे कविवर, कलम को मत साधारण मानो,
ये ही है अस्त्र – इसे पहचानो।
