मेरा गांव मुझे प्यार करता हैं
मेरा गांव मुझे प्यार करता हैं
"जहाँ अजनबी भी अपनापन दे जाए...
वहीं तो मेरा गाँव है, मेरा गर्व है!"
कभी गाँव की मिट्टी से बात की है आपने?
उसमें माँ का आँचल भी है, और बचपन की मिठास भी।
ये कविता, मेरे गाँव के उसी प्रेम और अपनत्व को समर्पित है 💛
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पढ़िए, महसूस कीजिए और अपने गाँव को याद कीजिए:
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कविता:
मेरा गाँव मुझे प्यार करता है
(लेखक: चन्दन कुमार)
मेरा गाँव मुझे प्यार करता है,
अजनबी भी पहचान का लगता है।
यहाँ हर चेहरा मुस्कान लिए है,
हर कोना कोई कहानी कहता है।
कच्ची गलियों की वो सोंधी महक,
अब भी मेरे ख्वाबों में बसती है।
छोटे-छोटे झगड़े, बड़े से रिश्ते,
हर याद अब भी दिल को हँसती है।
पीपल की छांव में बैठा बचपन,
अब भी मन के भीतर जिंदा है।
खेतों की हरियाली जब लहराए,
तो भीतर कोई सपना सिंचता है।
शाम ढले चौपाल सजती है,
बुज़ुर्गों की बातें अमृत सी लगती हैं।
कोई नहीं जो बेगाना लगे यहाँ,
हर आवाज़ में आत्मा मिलती है।
तेज़ रफ्तार से भरी ये दुनिया,
ना वो अपनापन दे सकती है।
जो गाँव की मिट्टी के ज़र्रे में,
हर बार मुझे जीना सिखाती है।
बड़ी-बड़ी सड़कों से दूर सही,
पर दिलों से बहुत करीब है मेरा गाँव।
जहाँ हर मोड़ पे बचपन खड़ा है,
और हर छाँव में माँ की छवि दिखती है।
मेरा गाँव मुझे प्यार करता है,
अजनबी भी पहचान का लगता है…
