"शब्दों से उठती क्रांति "
"शब्दों से उठती क्रांति "
🤘शब्दों से उठती क्रांति✍️
शब्द नहीं बस जुगनू होते,
अंधियारे में दीपक होते।
जब जुबां पे सच चमकता है,
तब हर अत्याचार थरथराते।
एक "इंकलाब" पुकार उठा था,
तो सिंहासन हिल उठे थे।
कलम चली जब रणभूमि में,
तो तलवारें शरमाते थे।
शब्दों ने नारे गढ़ डाले,
"सत्य" बना प्रतिकार का ताला।
जन-जन में चेतना जगाई,
भीड़ बनी फिर ज्वालामाला।
मत समझो शब्द कमज़ोर हैं,
ये इतिहास बदल सकते हैं।
एक कवि, एक वीर, एक साधु,
शब्दों से आग जला सकते हैं।
