ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु
किसी अबला के कपोलों पर
शुष्क आँसुओं की लकीरों जैसे
नदियाँ शुष्क कुछ गीली पड़ी है
अंखियों में आँसू रीत गये जैसे
तड़ाग खाली, सूखे-नीरस पड़े है
मानो सारी रंग-बिरंगी चुड़ियाँ
हाथों से छीनी या थोड़ी गयी है
कुछ ऐसे प्रकृति बदरंग पड़ी है
फूलों-पत्तों-बेलों की सुन्दर साड़ी
उतारी गयी हो तन से जैसे
श्वेत साड़ी में प्रकृति वैसे खड़ी है
न कोई उत्साह-उमंग धरा में
न किसी प्रिय से मिलन की तरंग
जीवन नीरस तपता वैविध्य में
प्रकृति मानो विधवा हो गयी है।