"जादू"
"जादू"
माँ जाने क्या जादू था
तेरे आँचल में...
हम पकड़े पकड़े छोर उसका
जब चलते थे
तेरे पीछे-पीछे
बस वही लगती थी हमें
सारी दुनिया...
जब मिट्टी में सने आते थे हम
उसी आँचल को भिगो कर
पोंछ देती थी
हमारा बदन
और रच-बस जाती थी
तेरी खुशबू हमारे तन-मन में...
और जब रात को
अपनी ही परछाई से डर कर
जाग उठते थे
नींद से...
तो तेरा ही आँचल
लिपटा कर
सो जाते थे
मीठी नींद में...
कुछ तो जादू था माँ
तेरे आँचल में...