"प्रेम"
"प्रेम"
ओ चाँद!
अपनी प्रिया
रजनी को
निहारने के लिये
ले आते हो
कर्ज़ में
उजाला
वो भी किश्तों में
पखवाड़े भर
और फ़िर
चुकाते रहते हो
किश्तों में
अगले पखवाड़े तक
ये भी तो
प्रेम ही है न
ओ चाँद!
ओ चाँद!
अपनी प्रिया
रजनी को
निहारने के लिये
ले आते हो
कर्ज़ में
उजाला
वो भी किश्तों में
पखवाड़े भर
और फ़िर
चुकाते रहते हो
किश्तों में
अगले पखवाड़े तक
ये भी तो
प्रेम ही है न
ओ चाँद!