"ज़िन्दगी-इक खेल"
"ज़िन्दगी-इक खेल"


ज़िन्दगी खेल नहीं,
मेल है सुख का दुख का,
अंधेरे से उजाले का
जीत से हार का
अपने से पराए का
ज़िन्दगी बाग नहीं
राह है कांटों से भरी
कहीं पर्वत, कहीं नदिया
कहीं जंगल है बयाबान
कभी रेगिस्तान
ज़िन्दगी यकजा नहीं
धूप कभी, छांव कभी,
कभी मिलती नहीं इक बूंद
तो बारिश है कभी
ज़िन्दगी उगता तो ढलता हुआ
सूरज है कभी
है कभी श्वेत कभी स्याह
कभी बेरंग तो धनख है कभी
ज़िन्दगी पाना ही नहीं है
कभी खोना भी है
कभी हंसना है तो
कभी यह रोना है
कभी सुलझी हुई तो
कभी पहेली है
कभी अनजान है ये
तो कभी सहेली है
सिर्फ़ फूलों का, सिर्फ़ रंगों का ये मेल नहीं,
है ये संघर्ष समझ तू इसको खेल नहीं...