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anki pandey

Abstract

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anki pandey

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रोशनी

रोशनी

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मैंने चीजों को उनके जाने के बाद अक्सर छुप कर देखा है , थोड़ी दूर से।

किसी चीज़ का‌ ना होना उसके होने से बस इतना ही अलग होता है, की अब आप उसे देख सकते हैं।

ऐसे ही एक दिन उसने मुझे देखते देख लिया था।

अब मेरी चोरी पकड़ी गई थी

अब मुझे मेरे देखने से घृणा होने लगी है

पुछा मैंने खुद से , क्या कर रही थी मैं? 

जवाब बेहद आसान था, 

जैसे पृथ्वी के उस हिस्से को देखना जहां सबसे ज्यादा रोशनी हो

और फिर उस हिस्से में छिप जाना जहां सबसे ज्यादा छाया हो

जैसे छाया में रहकर रौशनी के उस हिस्से को देखना

और फिर आंखों के सामने अंधेरा छा जाना।

यही तो कर रही थी ना मैं? 

बिल्कुल ऐसा ही?

अब मैंने देखना छोड़ दिया है।

मैंने अपनी घृणा उस तक पहुंचने नहीं दी ।

अब वो देखता होगा तो मैं उसे देखती दिखाई नहीं देती होंगी।

कोई पूछेगा तो वो बोलेगा , 

"पता नहीं , रौशनी तो उसे पसंद थी 

मगर अब वो देखती ही नहीं"।


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