प्रेम, कितना स्वार्थ जगाता है? मुझे मैं और मेरे से परे कुछ भी समझ नहीं आता है, मैं हूँ, मुझ मे... प्रेम, कितना स्वार्थ जगाता है? मुझे मैं और मेरे से परे कुछ भी समझ नहीं आता है...
मैं हूं व्यक्ति कुटुंब अगर यह मेरा होता मेरे सुख दुख में वह भी तो हंसता रोता । मैं हूं व्यक्ति कुटुंब अगर यह मेरा होता मेरे सुख दुख में वह भी तो हंसता रोत...
ईर्ष्या द्वेष की गर्मी से पृथ्वी का मौसम बदल रहा। ईर्ष्या द्वेष की गर्मी से पृथ्वी का मौसम बदल रहा।
क्रूरता मानव की देख पर्वत भी पिघल जाता है क्रूरता मानव की देख पर्वत भी पिघल जाता है
न ही करता शिकायत ज़िन्दगी से, मुझे कुछ मिला नहीं। न ही करता शिकायत ज़िन्दगी से, मुझे कुछ मिला नहीं।