Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.
Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.

मेरी – व्यथा

मेरी – व्यथा

2 mins
422


विस्तार कितना संकीर्ण बनाता है?

और सबकुछ कितने छोटे में सिमटाता है,

जो साथ रहे उन्हे छोड़कर, जो दूर बसे उनसे

फेसबुक, वाट्सअप पर चैट कराता है।


भूमण्डलीकरण भी कितना संकुचित बनाता है?

कि कोई अपना अपनों से अपनापन नहीं पाता है,

किसी सुदूर प्रांत का एक बच्चा कुछ ऐसे पीटा मारा जाता है

आर्त्तनाद और त्राहिमाम को उसकी कोई सुन नहीं पाता है


प्रेम, कितना स्वार्थ जगाता है?

मुझे मैं और मेरे से परे कुछ भी समझ नहीं आता है,

मैं हूँ, मुझ में सब है, मुझसे सबकुछ संभव है

करता हूँ मैं सबकुछ इस बात का मुझे दम्भ है,

‘मैं’ से मुझको सब प्यारा है, पर ‘तुझसे’ घृणा क्यों इतनी है,

ये कथा व्यथा की कही जाए जितनी लगती कम ही उतनी है।


‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ का भाव सम्मान कुछ ऐसे पाता है,

कि यत्र, तत्र, सर्वत्र, यथासंभव नारी का, शोषण होता जाता है

बेटी-बहन-बहू होकर सब त्याग किए उपेक्षित बनकर

प्रताड़ित फिर भी होती है हो निरक्षर या शिक्षित होकर

यही नियति सोची थी क्या हमने अपनी बेटी और बहनों का

फिर कारण क्या है ऐसी अनदेखी अनसुनी अनहोनी का।


ज्ञान कितना अविनम्र बनाता है,

जो गाँधी जैसे मानव को तुच्छ सामान्य बताता है,

राम, रहीम, तुलसी, कबीर को एक अपवाद बनाता है,

तम से ज्योर्तिगमन के उपरान्त की यह ज्योति है,

साधारण और असाधारण में जो भेद न होने देती है,


अंधकार घना हो जब नई-प्रभात तभी तो होती है,

उम्मीदें खत्म हो जाएँ सभी, नई शुरुआत वहीं से होती है,

तो विस्तार ये इतना विस्तृत है हम आप सभी समा जाएँ,

मैं और मेरे से ऊपर ,सभी नई परिभाषा में बँध जाएँ

व्हाट्सअप फेसबुक से आगे यथार्थ-जगत में जी पाएँ,

तब अपनों की अपनी व्यथा सभी, अपने आप समझ जाएँ॥




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational