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Kshama Sharma

Drama Inspirational

5.0  

Kshama Sharma

Drama Inspirational

मैं कन्या दान नहीं दूंगी

मैं कन्या दान नहीं दूंगी

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जिसको अपनी साँसों से सींचा

वो अभिमान नहीं दूंगी।

नहीं, मैं कन्या दान, नहीं दूंगी।


जिसकी प्यारी निंदिया की खातिर

कितनी नींदें वारी हैं,

उसकी नींद उड़ाने का

तुमको अधिकार नहीं दूंगी…

नहीं, मैं कन्या दान, नहीं दूंगी।


जिसके हँसने से जीती हूँ

जिसके रोने से मरती हूँ

जिसके खाने से बढ़ती हूँ

जिसके गिरने से डरती हूँ।


ऐसे रिश्तों के धागे को

तोड़ न उसे टूटने दूंगी

मैं अपना अभिमान नहीं दूंगी

नहीं, मैं कन्या दान, नहीं दूंगी।


चिड़िया सी वो चूँ -चूँ न करती

तितली सी इठलाती है

पंख बिना जो

अपने अरमानों से उड़ जाती है।


ऐसी प्यारी ‘लाडो’ को

पिंजरे में न पड़न

े दूंगी…

नहीं, मैं कन्या दान ,नहीं दूंगी।


मैं ‘उस’ पर अधिकारों से मुक्त रहूँ

तुम कर्त्तव्यों से विमुख

तुम सब पाओ

वो बस त्यागे।


ऐसी लाचार विक्षिप्त परंपरा में

न उसे बंधने दूंगी

नहीं, मैं कन्या दान, नहीं दूंगी।


कन्या-दान हो भले ही दान बड़ा,

मैं ऐसा पुण्य नहीं लूंगी।

अपने तन-मन के टुकड़े को

भिक्षा में भी दान नहीं दूंगी।

नहीं, मैं कन्या ! दान , नहीं दूंगी।


वो लक्ष्मी है, वो दुर्गा है,

वो अपनी भाग्य विधाता है।

खुद जीवन जिसमें जीता है,

वो ऐसी अद्भूत गाथा है।


उसके संस्कारों को पूर्ण करुँ

मैं यह सम्मान नहीं लूंगी।

नहीं, मैं कन्या दान, नहीं दूंगी।


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