हे राम तुम कहाँ नहीं हो
हे राम तुम कहाँ नहीं हो


हे राम तुम कब हो और कहाँ नहीं हो
तुम यहाँ हो और वहां नहीं हो ?
मेरे मन में हो और तन मैं हो ,
इस जग जन के हर मन में हो,
तुम आदि , अंत परायण हो,
तुम मेरी अमर रामायण हो।
तुम चर में हो अचर में हो,
सृष्टि के हर कण में हो ,
तुम जड़ में हो चेतन में हो ,
अंतःकरण के अवचेतन में हो,
तुम युग भी हो कालांतर हो ,
या शरीर प्राण का अंतर हो ,
तुम भीतर हो और बहार हो ,
तुम शांत स्थिर कोलाहल हो।
जागो तुमको अब बंधना होगा,
बस तत्त्व पदार्थ बनना होगा,
अब तुम्हारी सीमित परिणीति और प्रशासन है,
अयोध्यापति हो ये शासन का अनुशासन है।