शीर्षक:किनारा समुद्र का
शीर्षक:किनारा समुद्र का
समुद्र किनारे ठिठक कर ठहर गई मानो
भाव की लहरें व तरंगे मेरे भीतर ही हिलारे ले रही हो
उठती तरंगित लहर मानो कह रही हो व्यथा अपनी
ज्वार की लहरों से मन मे उठ रहे भावों के बवंडर से
जलभवँर में मानो फंस गए हो उसके मन के उदगार
समुद्र किनारे ठिठक कर ठहर गई मानो
साहिल पर बैठ सोच रही उम्मीद की शायद
किनारों पर ही कोई आस हो जाये मानो पूरी
लहर आये व किनारों को छू कर हो जाये तृप्त
प्रचंड रूप लिए लहरे मानो कह रही हो कुछ
समुद्र किनारे ठिठक कर ठहर गई मानो
न जाने मिलों का सफर तय कर आई हो मिलने
अपने भयावह क्रंदन को समेटे अपने भीतर ही
रेत को कह रही हो तुम रुको मेरी लहरों में मिलन को
पदचाप तक बहा ले जाती हैं लहरे नही रहने देती
समुद्र किनारे ठिठक कर ठहर गई मानो
मन के भीतर उठते सवालों को प्रचंडता देती लहरे
छोड़ जाती हैं हर बार कुछ प्रश्न मेरे लिए
क्या होता हैं जो रह नही पाती किनारे पर
क्यो लौटना पड़ता हैं जहां से आई हैं उछाल लेकर।
