वो गलियां
वो गलियां
प्रेमी युगल किशोरी की नजरें प्यासी हैं
हर वह गली जो वृंदावन को जाती हैं
कई मोड़ो पर वह अद्भुत हिस्से हैं।
सूरदास के पद कहीं रसखान के छंद
जो कह रहे अपने नजरिए के किस्से हैं
अपनी आस्था से वह कुंज गली छूटती नहीं
क्या करें की कृष्ण राधा के मिलन की आस जो टूटती नहीं
खिलखिलाहट संग सखियों का जिस गली से आना जाना था
वही सांँवरे का कदंब के नीचे वंशी का गुनगुनाना था
नर्तक मयूर का वहीं पर पंख फैलाकर झूमना था
मिलन के तराने वह गली आज भी कह रही
जहाँ पर राधा की पाजेब की छनक अब तक खनक रही।
