नवजीवन
नवजीवन
बेटी की मीठी किलकारी सुनकर
मां का हृदय झूम उठा
नन्ही सी परी को कलेजे से लगाकर
उसका मन संतुष्ट हुआ
नौ महीने पेट में रखकर
रक्त से अपने था पाला और सींचा
खुश हो गई थी यह बात भूलकर
कि घर वालों को तो चाहिए था बेटा
शायद विचार बदल जाएंगे उनके यह सोचकर
बच्ची के माथे को हल्के से ही चूम लिया
पति के कदमों की आहट पहचानकर
अनगिनत आशंकाओं से पूरा बदन सिहर गया
कहाँ छुप जाऊँ इन राक्षसों से बचकर
यह सवाल सामने आ खड़ा हुआ
कुछ निर्णय ले पाती इस विषय पर
तभी अचानक आगमन उसके पति का हुआ
आँखों में डर का साया महसूस कर
पति ने उसके हाथ से बच्ची को उठा लिया
छोटे से उस जीव का स्पर्श पाकर
नवजीवन का उसमें संचार हुआ
चाँद सा प्यारा उसका मुखड़ा देखकर
पति का अंतर्मन पसीज गया
पति में आए इस परिवर्तन को जानकर
आँखों पर अपनी उसका विश्वास न हुआ
सर झुका कर पत्नी का हाथ पकड़कर
पति क्षमा का अधिकारी हुआ
जिम्मेदार पति और पिता होने का वादा कर
दूसरों के लिए वह मिसाल बना
