मैं हूं कवि
मैं हूं कवि
मैं हूँ कवि
सिर्फ अपनी बात कहूँ
सच के साथ रहूं
सब्दों की माला
को बुनकर एक
धागे में पिरोकर
भेद सारे कहूँ।
मैं हूँ कवि।
कभी प्रकट करूँ
प्रेम कभी करूँ रोष
संग रखूं हमेशा
जोश और होश
मुखरित हो आत्मसात करूँ
मैं हूँ कवि।
कभी सौंदर्य के संग
कभी संग प्रेम के
कभी वीरता के संग
बोल अपने रखूं
बिना डर के
न ही प्रलोभन के
वाणी पे लगाम के संग
पक्ष अपना रखूं
मैं हूँ कवि।
स्वहित की
भावना के रहित
परहित की मनोकामना
के संग
राष्ट्र प्रेम विकसित करूँ
मैं हूँ कवि।
