छठ पर्व
छठ पर्व
छठ.....यह शब्द सुनते ही मानो जैसे
मन में उल्लास और दिल में उमंग सा जाग जाता हो
उमंग पाकीजा और पवित्रता का
यकीन मानो...छठ त्यौहार नहीं संस्कार है बिहार का
होता चार दिनों का है ये
और इसकी तैयारियां भी घरों में
चार दिन पहले ही शुरू होती है
माना कि जब यह पर्व आता है ना तो
बाजार में नहीं बिकने वाले फलों जैसे पनियाला
उसका भी भाव आसमान को छू जाता है
पर पता है?
यह शायद इकलौता ऐसा पर्व है
जिसमें खरीदने वाला बेचने वाले से
मोल भाव नही करता सामानों का
यकीन मानो...छठ त्यौहार नहीं संस्कार है बिहार का
वैसे तो बड़ी ही अजीब लगती है लौकी की सब्जी
पर नहाय खाए वाले दिन इस सब्जी में
बिना प्याज और लहसन के भी क्या स्वाद आता है
यह त्योहार है खड़ना की देर रात को जागकर
गन्ने की रस और चावल से बना प्रसाद खाने का
डाला और सूप को सिर पर उठाना और
संध्या अर्घ्य वाली शाम घाट पर जाकर
डूबते सूर्य को जल और दुग्ध चढ़ाने का
यकीन मानो...छठ त्यौहार नहीं संस्कार है बिहार का
सबसे खास तो दुसरी अर्घ्य
और छठ के अंतिम दिन होता है
जब तीन बजे घर में बच्चे से लेकर बूढ़े
सबकी नींद एक साथ खुल जाती है
जल्दी से तैयार होकर घाट पर पहुंचना
क्यूंकि होड़ लगती है उधर जाकर
पहले गंगा में डुबकी लगाने का और
सबसे बेहतर जगह पर सूप सजाने का
फिर उनमें दीया जलाने का
सुर्य देव के निकलने से पहले की लाली को
निहारने से लेकर दर्शन उनके उदय होने का
यकीन मानो...छठ त्यौहार नहीं संस्कार है बिहार का
छठ पर घर रौनक आती है
मोहल्ले के सारे लोग अपनी सारी मनमुटाव
भूल जाते हैं इस पर्व पर
यह पर्व है लोगों को एक साथ लाके का
उनके बीच की बेतुकी दूरियां मिटाने का
यह उत्सव है सद्भावना संकल्प और समृद्धि का
यकीन मानो...छठ त्यौहार नहीं संस्कार है बिहार का।
