मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ


अंधियारे के
वक्षस्थल पर, मैं
दृढ़ता से ही चलता हूँ
तम का विनाश
जग में प्रकाश
नव निधि की
ले कर नवीन आस
पथ में फैलाकर
नव प्रकाश
मैं बढ़ता हूँ
मैं दीपक हूँ, मैं जलता हूँ
संघर्षों के पथ पर
बढते रहने का है अपना
संकल्प नया, उत्साह नया
मिलकर जीतेंगे ही
यह आशा तो है ही
विश्वाश भी है
बल भी है तो साधन भी
नभ की चोटी पर चढ़ कर
देख रहा तम को छंटते
मैं पल पल ही मुस्काता हूँ
मैं दीपक हूँ, मैं जलता हूँ
रातों के सन्नाटे हैं
कुछ और कठिन
सी राहें हैं
उज्जवल वरदान
मचलता है \
जब जब संकट
फैलता है, हम साथ
रहें, हम जुटे रहें
अंधियारों के सम्मुख
मैं फूलों सा ही खिलता हूँ
मैं दीपक हूँ, मैं जलता हूँ।