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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"छोटी सी गुड़ियां"

"छोटी सी गुड़ियां"

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"छोटी सी गुड़िया"

एक छोटी सी गुड़िया

खुशियों की पुड़िया

इससे घर मे चमकती

हर्षोल्लास की बिंदियां

जैसे ही तू आयी,मुनिया

हनुमानजी की कसम

खुशी न समाई,मेरे जिया

तू हर त्योहार की,घडियां

खिलाती है,घर की बगिया

क्यों बंद,लोगों की अंखियां

गर्भ में मार रहे है,बेटियां

क्यों है,हमारी ऐसी नीतियां

बेटों पर देते ज्यादा,जिया

जबकि ये होती वे,कलियां

जिनसे एक न,दो घरों की

खिलती है,सदा ही बगियां

एक छोटी सी गुड़िया

कितने रूपों की पुड़िया

मां,बहन,पत्नी और बेटियां

इनके बिन क्या है,दुनिया

ज़रा सोचो फिर,मारो

गर्भ में तुम लोग,बेटियां

कितना बड़ा हो,दरिया

जल पीते,सिर्फ,नदियां

तन में शक्ति,चिंगारियां

उसके दूध की है,रे भैया

गर उसकी न होती,छैया

न खिलती,जग बगिया

कह रहा,साखी,सुनियां

यह संसार बिना स्त्रियां

बिना प्रकृति की दुनिया

बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ

हर तरफ होगी,खुशियां

बिटियां,माथे की बिंदियां

माता ने कन्या रूप लिया

ताकि हम आदर करे,बेटियां

दिल से विजय

विजय कुमार पाराशर-"साखी"


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