ख़ुश हूं मैं
ख़ुश हूं मैं
रोज़ प्रण करती
फिर उन्हें तोड़ती
खुद से झूठ बोलती
खुश हूं मैं
रोज़ तिरस्कृत होती
फिर कतरा-कतरा समेटती
खुद को जोड़ती
खुश हूं मैं
रोज़ बेबसी पर रोती
खारे आंसू पीती
फिर खुद को संभालती
खुश हूं मैं
रोज़ दुनिया से लड़ती
फिर गरजती और बरसती
खुद को जिंदगी से भरती
खुश हूं मैं
