मेरा मन
मेरा मन
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मन मेरा अदृश्य है
पर हर क्षण होने का आभास है
सूक्ष्म है, पर विस्तृत है
भावनाओं के मैदान पर
उमंगों की कुलांचे भरता
सतरंगी इन्द्रधनुष पर फिसलता
आकांक्षाओं की रंगीन पतंगों सा उड़ता
जानता है डोर यथार्थ ने थामी है
पर फिर भी क्षितिज की ओर निरंतर
बढ़ता है मेरा मन!
कक्ष कई है मेरे मन में
कुछ रोशन कुछ अंधियारे
व्याकुल भाव है रहते उनमें
बंद द्वार जिनके खुलते नहीं
मौन उदगार है जो प्रकट नहीं
घाव है जो भरे नहीं!
अल्प बुद्धि है मेरा मन
जान कर राह पथरीली चुनता
कंटक चुनता पुष्प त्याग कर
घावों पर मुस्काता
अश्रु धारा से पिघलता
अनुराग के सांचे में ढलता
मेरा सखा है मेरा मन!