मन की गरीबी
मन की गरीबी
गरीबी एक अभिशाप है
चाहे धन की हो या मन की।
धन की गरीबी को दूर किया जा सकता है
पर मन की गरीबी से,नहीं निकला जा सकता
क्योंकि यह हमारे दिल-ओ-दिमाग पर छा जाती है
हमें कुछ सुनाई नहीं देता,ना किसी की करुण पुकार।
ना किसी की याचना और
ना किसी का क्रंदन।
हम स्वार्थ में ही खो जाते हैं,
और आत्ममुग्ध हो जाते हैं,
अपने अधिकारों के प्रति सजग होते हैं,
पर अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं।
इस दिल की गरीबी को मिटाना होगा
निर्धन की ओर,सहायता का हाथ बढ़ाना होगा
खुले दिल से, समानता का भाव अपनाना होगा ,
मत भूलो, तुम एक मानव हो और
अपने कर्मों के लेखे-जोखे के साथ ही,
अपना चेहरा उस परमात्मा को दिखाना होगा।
तो आओ सत मार्ग पर चलें,
और सद्कर्मों से अपना जीवन सफल बनाएं,
धन की गरीबी ना मिटा सकें तो कोई बात नहीं;
पर अपने मन की गरीबी को जरूर मिटाएं।
अपने मन की गरीबी को जरूर मिटाएं।।