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Kshama Sharma

Abstract Inspirational

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Kshama Sharma

Abstract Inspirational

हे राम तुम कहाँ नहीं हो

हे राम तुम कहाँ नहीं हो

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 हे राम तुम कब हो और कहाँ नहीं हो

तुम यहाँ हो और वहां नहीं हो ?


मेरे मन और तन मैं हो ,

इस जग जन के हर मन में हो,

तुम आदि , अंत परायण हो,

तुम मेरी अखंड रामायण हो। 


तुम चर में हो अचर में हो,

सृष्टि के हर कण में हो ,

तुम जड़ में हो चेतन में हो ,

अंतःकरण के अवचेतन में हो,


तुम युग भी हो कालांतर हो ,

या शरीर प्राण का अंतर हो ,

तुम भीतर हो और बहार हो ,

तुम शांत स्थिर कोलाहल हो। 


मंगल भवन अमंगल हारी ,तुम नर से नारायण हो ,

मावस कार्तिक हर घर पहुंचे, वो तुलसी के मानस हो,

श्री राम चंद्र कृपाल भजमन, प्रातः संध्या वंदन हो ,

सचिदानंद अलौकिक अंतर्मन के स्वामी हो ,


जागो राम, पर तुमको अब मर्यादा में बंधना होगा,

सिमट एक नगरी का बन बस तत्त्व पदार्थ बनना होगा,

तुम्हारी निश्चित परिणीति- गति, राज प्रशासन है,

अयोध्यापति हो ये अब तुम पर शासन का अनुशासन है। 



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