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Amita Dash

Abstract

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Amita Dash

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शब्दों के मोती

शब्दों के मोती

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अंधेरी रात।

सुनसान छत।

तुम और मैं, करनी है ढ़ेर सारी बात।

तुम तो खामोश!

रोज़ टिमटिमाते हुए आपको देखती हूं।

आपको रोता देख के बादल में छुप जाती हूं।

आप क्यों होती हो उदास।

मैं सदा रहती हूं आपके बेटे के पास।

दिन की उजाले में भले ही दिखाई न दूं,रात को आती हूं आपके पास।

पूर्णिमा की चांद नहीं, फिर भी किरणे बिखरती हूं।

छत के ऊपर बैठ के कोई कहता है ,ये देख तेरे दादा,दादी आसमान के तारे हैं ।

सब सुनती हूं।

कोई पुछता है मामा, भैया कहां है? 

उत्तर में वही बात , मां के आंखों की रोशनी लिए दादाजी के पीछे बैठा है।

ज्योतिर्विद से छोटे बच्चों तक्

सबका प्यारा हूं मैं।

रात-भर परीक्षण, निरीक्षण, अनुसंधान।

भले ही चांद न बनापाई, लेकिन टिमटिमाती आंखों से जगत को निहारती हूं मैं।

आकाश का शोभा बढ़ाती हूं मैं,तारा हूं मैं।


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