लम्हें जिन्दगी के
लम्हें जिन्दगी के
हम दोनों थे पक्की सहेली
एक दूसरे पे मर मिटने का किए थे वादा
सोने का समय छोड़ के
ऐसा एक ही पल नहीं
कोई हमें कर दे जुदा
काल के आगे किसका वश
एक दिन बैठे थे दोनों तालाब के पास
पैर फिसल गया कर रहे थे हंसी मजाक
गिर गए दोनों तालाब के अंदर
उसे बचा नहीं पाई
डूबके वो मर गई
हमारी दोस्ती, गुड्डा गुड्डी की शादी
सब रह गई अधूरी
वो लम्हा याद बनकर रह गई मेरी!
