लम्हें जिन्दगी के
लम्हें जिन्दगी के
लम्हा गुज़र गया
जिंदगी भी गुजर गई
कोई गुज़र नहीं गया
तो वो हूं मैं
सब कुछ तो वैसे ही वैसे
पहले था जैसे
सुबह होती है
शाम ढलती है
एक साल से दो साल
दो साल से चार
कब तक इंतज़ार
शब्द नहीं क्या बयां करूं
कैसे कटते दिन रात
ये छटपटाहट ये व्याकुल मन
मेरे बेटे को लौटा दो भगवान