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Dr. Shubhra Maheshwari

Abstract

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Dr. Shubhra Maheshwari

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प्यासा पागल पपीहा

प्यासा पागल पपीहा

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प्यासा मन प्यासा ही रह ,पपीहा सा हुआ जाता है।

मन का क्या करें, मन पागल पपीहा हुआ जाता है।

हम पागल क्या हुए सारा जहां पागल नजर आता है।।

किसी में थोड़ा तो किसी में ज्यादा नजर आता है।।

मदहोशी का ये आलम हुआ है अब दोस्तों,

सारा जहां ही हमें अब तो जालिम नजर आता है।।

वो गैर थे निगाहें बदल गयीं तो कोई बात नहीं,

अब बेगैरत हमारे चाहने वाले ही हुये जाते हैं।।

कौन कहता है कि पागलपन अच्छा नहीं होता,

हमें तो अब इसमें भी मजा ही मजा आता है।।

  


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