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Dr. Shubhra Maheshwari

Fantasy

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Dr. Shubhra Maheshwari

Fantasy

मेरा आशियाना

मेरा आशियाना

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जब मेरा अपना आशियाना था,

हर तरफ मेरा ही फसाना था।।

पास बस दुआओं के सिवा कुछ नहीं

जब दूर क्यों अब मुझसे जमाना था।।


ये तो फितरत है बदल जाने की।

गिरगिट की तरह रंग दिखाने की।।

अफसोस न कर इस कदर दोस्त,

'शुभ्रा ' यही रंगत है बेदर्द ज़माने की।।



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