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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

4.5  

Ratna Kaul Bhardwaj

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मैं और मेरी ज़िन्दगी

मैं और मेरी ज़िन्दगी

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ज़िन्दगी कभी ठहरी सी लगती है

पर हैं हलचल अभी बाकी कहीं 

लगता है कभी अकेले हैं

पर बिखरे हैं शायद अभी नहीं।


बहुत मुमकिन है कि 

जहाँ को लगे मैं तन्हा हूँ 

तन्हा गर हूँ भी पर किसी 

तिनके में जान है अभी बाकी। 


हर बहाव के साथ रुख बदलना 

मेरी आदत में शामिल हो गया 

समंदर मेरी मंज़िल नहीं 

दरिया का पानी है अभी काफी।


बारिश जब रुख अपना बदलती है 

जाने कितनी कश्तियाँ डूब जाती है 

पर शुमार करना मुझे उनमें 

हौसला रखते हैं डूबते कभी नहीं।


मेरी कश्ती के खेवनहार ने 

मेरी पतवार हमेशा संभाली हैं 

मैं उसकी थी एक ऐसी मुरीद, उसके 

फैसले में खोट कभी दिखी नहीं।


वैसे मेरे मुरीद मेरा हौसला है 

मुश्किलों से लड़ना सिखा दिया 

उनकी हज़ार कोशिशों पर भी 

बनी नहीं मैं रकीब किसी की ।


है यह वक़्त बहुत मुश्किलों भरा 

उसपर हालातों न बेसबब कर दिया 

पर दिल हर के बैठ जाऊं 

ऐसी मुफलिसी अभी आयी नहीं 


मैं और मेरी ज़िन्दगी आपस में 

अठखेलियाँ तो करती रहती है 

पर जनून अभी तक बाक़ी है

और हर पहलू को जानना भी बाक़ी। 


 

  


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