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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy Classics Inspirational

4.5  

Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy Classics Inspirational

रस्म छोड़ी नहीं

रस्म छोड़ी नहीं

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सांसों में है अब भारीपन
दर्द ने जो पनाह ली है
लगता है इस वक़्त ने
दुश्मन से सलाह ली है

हमने जिए जाने की
रस्म कभी छोड़ी नहीं
सिरहाने पड़ी घड़ी ने भी
रफ्तार कभी तोड़ी नहीं

लगाकर छत को सीने से
चांद की चांदनी ओढ़ ली
थे सामने मंजर कतार में 
मैने कड़ी से कड़ी जोड़ ली

उनके लफ्जों के तीरों ने
दिल के टुकड़े हजार किए
वफ़ा की हमारी अदा तो देखो
नाम उनके खुशी के बाजार किए

माना कि हर वाक़िआ बुलाना
काम ये कोई आसान नहीं
बर्फीले मौसम, बिन चहचहाहट 
गुलशनों को भी आराम नहीं.....


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