गीत- सामाजिक संवेदनाओं पर
गीत- सामाजिक संवेदनाओं पर


आज झलकता बड़े बुज़ुर्गों
की आँखों में पानी क्यों हैं ?
कलतक हम बच्चे थे जीवन
में उल्लास भरा रहता था।
घर आँगन सबके अंतर्मन
में मधुमास भरा रहता था।
थीं प्रतिकूल परिस्थितियाँ पर
जीवन में संत्रास नहीं था।
इतना समय बदल जायेगा
इसका भी आभास नहीं था।
सुख सुविधाएँ दासी हैं अब
फिर इतनी वीरानी क्यों है ?
आज झलकता......
अपनी सभी प्रथाएँ धीरे
धीरे हम भूले जाते हैं।
अब बच्चों के साथ पश्चिमी
राग स्वयं ही सब गाते हैं।
संतति को संस्कार सिखाना
होता है कर्तव्य हमारा।
नहीं सिखाया तो कर लेंगे
हमसे भी ये कभी किनारा।
हमने भी तो यही किया है
फिर इतनी हैरा
नी क्यों है ?
आज झलकता..
समय बड़ा ही निष्ठुर है ये
कबतक इसके साथ चलोगे।
फिसल गया यदि मुट्ठी से तो
बैठ अकेले हाथ मलोगे।
सब कुछ मिट जाता है जग में
नाम हमारा रह जाता है।
कोई कोई ही है जिसका
नाम ज़माना दुहराता है।
क्षणभंगुर जीवन के प्रति
दुनिया इतनी दीवानी क्यों है ?
आज झलकता...
अच्छे कर्म सदा जीवन में
करना बहुत कठिन लगता है।
तीक्ष्ण कंटीले सत्य मार्ग पर
चलना बहुत कठिन लगता है।
जीवन सुगम बनाना है तो
यही मार्ग अपनाना होगा।
जो हमसे रूठे हैं उनको
जाकर स्वयं मनाना होगा।
यदि हम इतना समझ चुके हैं
तो फिर आनाकानी क्यों है ?
आज झलकता...