किसान,
किसान,
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थक कर बैठ गयी पुरवाई,
लेकिन पानी तनिक न बरसा।
खाली बैठा है किसान बस,
आसमान में झाँक रहा है।
प्यासी धरती, पर वह भूखा,
सिर्फ चून ही फाँक रहा है।
तकते भूरे, काले बादल,
अब तो बीत गया है अरसा।
जो अनाज उपजाकर देता,
वह कितना लाचार खड़ा है!
महँगे डीजल, खाद हो गए,
चिंता में बीमार पड़ा है।
उसकी सारी फसलें सस्ती,
भाव देख कर जाता मर-सा।
जिस किसान का रोना रोकर,
राजनीति की बहसें चलतीं।
पूछो सरकारों की कितनी,
उसको सुख सुविधाएं मिलतीं।
बिक जाते फिर वही खेत हैं,
जिनको उसने पाला घर-सा।