हर बार तुम्हीं क्यों ?
हर बार तुम्हीं क्यों ?


तुम्हें हवस का भाजन क्यों हर बार बनाया जाता है,
बाद तुम्हारे मरने के क्यों दीप जलाया जाता है।
कई दिनों तक खबर तुम्हारी छपती है अखबारों में,
कई दिनों तक चौराहों पर शोक मनाया जाता है।
और भेड़िए इंसानों के चहरे में आ जाते हैं,
खाल, मांस, हड्डी तक को वे नोच नोच खा जाते हैं।
बहसी, नीच, दरिंदे हर पल घात, लगाए रहते हैं,
मासूमों को चट कर जाते जहां कहीं पा जाते हैं।
सब होने के बाद तनिक हलचल होती सरकारों में,
ऐसा लगता जंग लग गई तूफानी हथियारों में।
ल
हरें उठती, गर्जन होता, सैलाबी होता पानी,
किन्तु सिमट जाता दरिया सा अपने उन्हीं किनारों में।
कब तक यूं ही लाज लुटेगी बेटी की गलियारों में,
कब तक यूं ही आग लगेगी बेटी के अधिकारों में।
कब तक न्याय नहीं पाएगी दुनियां को जनने बाली,
कब तक गठित समितियां होंगी सत्ता के दरबारों में।
और सुनो हे जग जननी अब नहीं किसी से आस करो,
हैवानों पर रहो सशंकित मत इन पर विश्वास करो।
फूल छोड़कर हाथों से तलवार उठालो तुम इन में,
सिर्फ लक्ष्मी नहीं, भवानी हो इसका अहसास करो।