Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Jyoti Mishra

Tragedy

4  

Jyoti Mishra

Tragedy

रोटियाँ

रोटियाँ

1 min
646


पहियों के पीछे 

भागते पदचिन्ह,

प्रतीक्षारत... बत्तियों के हरी होने तक,

शीशे के उस पार देखती आँखों से

कहता एक फूल... हाथों में फूल लिए;

पुतलियों की ड्योढ़ी से झांकती 

उम्मीदों के संग... आत्मविश्वास की मुस्कान,

बिल्कुल ताजे हैं!... 

मेमसाब पर अच्छे लगेंगे;


हवाओं में शहद से घुलते स्वर ने

कर्णपटल पर अपनी छाप छोड़ी

तो.. हृदय की जिह्वा 

उसे चखने को मजबूर हो गयी,

चमड़े की दो परतों के बीच से निकले

कागज के उस टुकड़े को थाम...

उछल पड़ा वह;


फिर अचानक!

दौड़ पड़ा...

जादूगर और परियों की किताबों से सजे... 

उस दुकान की ओर,

हजार बार पलट कर देखा.. उस जिल्द को,

लिखा था... मूल्य पचास रुपए! 


यथास्थान रख...

चल पड़ा ढाबे की ओर,

ढलकते अश्रुओं की नमी

गालों से पोंछ, 

थमा दिया... बीस का वो नोट;


अक्षरों के भार से मुक्त

अख़बार में लिपटी रोटियाँ थामे,

आ पहुँचा झोपड़ी में,

टूटी खाट पर पड़ी 

प्रतीक्षारत हड्डियों के ढाँचे के समक्ष,


और फिर...

सिरहाने बैठ... मुस्कुरा कर कहा, 

ले माँ... ले आया रोटियाँ!




Rate this content
Log in

More hindi poem from Jyoti Mishra

Similar hindi poem from Tragedy