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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"छद्म अपनापन"

"छद्म अपनापन"

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अपनापन तो इस स्वार्थी दुनिया में हर कोई दिखाता है

जब आती है, पैसे देने की बारी, हर शख्स दूर हट जाता है

बिना मतलब के कोई भी आदमी हमारे पास न आता है

बिना स्वार्थ के कोई नहीं यहां पर सच्चा रिश्ता निभाता है


जब पास पैसे हो, कोई भी चाचा, बुआ, मामा बन जाता है

पैसे खत्म, रिश्ते खत्म, सूखे में यहां कौन जहाज चलाता है

जब तक दौलत पास है, लोग रखेंगे आपसे रिश्ते बेहद खास है

तंगहाली में तो अपना यह कपड़ा भी दुश्मन बन जाता है


जब तक इस दुनिया में आप लोगों का मतलब निकालते रहेंगे

तब तक ही आप उन लोगों के लिये आंखों के तारे बने रहेंगे

जब कोई किसी के लिये बेमतलब का बोझ बन जाता है

तब वो अपने प्यारे लोगों के बीच फूल बेगाना बन जाता है


बुरा वक्त आने पर ही सच-सच में बाहर नजर आता है

फूलों के दामन में भला कौन शूलों को चूमने जाता है

गम का दरिया ही हमें सुकून के साहिल तक ले जाता है

वरना गहराई में उतरे बिना कौन यहां पर मोती पाता है


इसलिये अपनेपन के छद्म शहद से ज़रा बचना तू दुनिया में,

छद्म मीठेपन में बड़े से बड़ा भी मक्खी जैसे उलझ जाता है

जो बाहरी अपनेपन से अधिक भीतरी अपनापन अपनाता है

वो ही आदमी जग कीचड़ में कमल जैसा उन्मुक्त लहराता है



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